अरुण कुमार चौधरी, झारखंड के जनक तथा देशम गुरू शिबू सोरेन दुमका में हैट्रिक मनाने जा रहे हैं। इस समय देश में किसी भी चुनावी लहर नहीं चल रहा है, इसलिये दुमका सीट सबसे सुरक्षित माना जा रहा है। ऐसे भी दुमका में महागठबंधन एक साथ मिलकर भाजपा को हराने के लिए एकजुट हैं और अब केवल चुनाव के दिन की प्रतिक्षा में आम जनता है। इस चुनाव में खासियत है कि शिबू सोरेन अपने गहन प्रचार में नहीं हैं। इनके बदले में झामुमो तथा जेवीएम के कार्यकर्ता जोश के साथ प्रचार में लगे हुए हैं और इसी क्रम में मौसम के तापमान से अधिक इन दिनों झारखंड की दूसरी राजधानी दुमका में चुनावी तपिश है। मुख्यमंत्री रघुवर दास से लेकर महागठबंधन के कद्दावर नेताओं का यहां कैंप करना बताता है कि दुमका कितनी अहम सीट है। आठ बार यहां से सांसद रहे झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष दिशोम गुरु शिबू सोरेन का मुकाबला एक बार फिर अपने शिष्य सुनील सोरेन से हैं।
शिबू कहते हैं कि दिल्ली में उनकी मौजूदगी का मतलब आदिवासियों की सशक्त आवाज है। शहर के खिजुरिया स्थित शिबू के घर का गेट कभी बंद नहीं होता। वे दिन में दो बार लोगों से यहीं मिलते हैं। चर्चा है कि गुरु जी का यह आखिरी चुनाव है। इस सवाल पर उनका जवाब है- जब तक जिंदा हूं, आदिवासी हितों के लिए लड़ता रहूंगा। वह प्रचार पर कम ही निकलते हैं, कहते हैं- हमारा प्रचार जनता करती है। मोदी लहर के सवाल पर कहते हैं मोदी बड़ा नेता नहीं है। संथाल हमारा है और यहां किसी की नहीं चलेगी। शिबू सभाओं में छोटा ही भाषण देते हैं।
प्रतिद्वंद्वी सुनील के बारे में कहते हैं- वह हमारा ही बच्चा है। शहर में लगे चंद बैनरों को छोड़ दें तो उनके प्रचार का तरीका परंपरागत ही है। संथाल क्षेत्र में वोट या समाज से जुड़ा फैसला ग्राम सभाएं करती हैं। यही शिबू की ताकत है। भाजपा अभी तक इसकी काट नहीं खोज नहीं पाई है। 74 वर्षीय शिबू के सामने तीसरी बार उन्हीं के शिष्य 40 वर्षीय सुनील सोरेन हैं। शिबू के पुत्र दुर्गा सोरेन को जामा विधानसभा का चुनाव हरा कर सुर्खियों में आए सुनील अपनी हर सभा में शिबू पर हमलावर रहते हैं। गुरुजी की उम्र का जिक्र कर उन्हें असमर्थ बताते हैं और अपने लिए मौका मांगते हैं।
कहते हैं- इतने लंबे समय तक संथाल के इस नेता ने आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया। उनके विकास के लिए कभी कोई आवाज नहीं उठाई। संसद में सवाल तक नहीं पूछा। सुनील अपने गांव तारबंधा से ही प्रचार पर निकलते हैं। गांवों में ज्यादा संपर्क करते हैं। भाजपा ने भी गांवों में पैठ के लिए संथालों के बीच कार्यकर्ताओं की टोली खड़ी की है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी संथाल क्षेत्र पर खास फोकस कर रखा है। उनकी कोशिश झामुमो के सबसे कद्दावर चेहरे को उनके गढ़ में ही मात देने की है। इन चुनौतियों के बीच शिबू दमदारी से मैदान में डटे हैं।
ग्रामीण इलाकों की चुनावी चर्चा गुरुजी के इर्द-गिर्द घूमती है तो शहरों में लोग राष्ट्रवाद की बात करते हैं। चुनाव दर चुनाव शिबू सोरेन की जीत के अंतर के गिरते ग्राफ की चिंता इस बार झामुमो को कम है क्योंकि झाविमो साथ है। झाविमो के 17.51% वोट ट्रांसफर होने की स्थिति में झामुमो का वोट शेयर 55% हो जाता है। मोदी लहर में भी भाजपा अपने वोट शेयर को 33% तक ही पहुंचा पाई थी। इसी अंतर को पाटना भाजपा की बड़ी चिंता है।
करिश्माई व्यक्तित्व। आदिवासी समाज में दिशोम गुरु का दर्जा। शिबू की एक आवाज पर हजारों लोग निकल पड़ते हैं। कई आंदोलनों के जनक रहे हैं। शिबू सोरेन की बड़ी कमजोरी है कि युवाओं के बीच उनकी पैठ नदारद है।
सुनील की उम्र सबसे बड़ी ताकत है। वे पिछले दो चुनाव भले ही हारे हो लेकिन उन्होंने वोट शेयर बढ़ाया है। नौजवानों के बीच वे लोकप्रिय है। भाजपा के स्थानीय नेताओं के साथ समन्वय की कमी सुनील की बड़ी कमजोरी है।